7 August – भारतीय इतिहास में

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7 August 1905 – स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत

7 August 1905 को कोलकाता के त्रिशूल ग्राम में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई। इस दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में विभिन्न राजनीतिक नेता, समाज सेवी, और विचारक एकत्र हुए और स्वदेशी आंदोलन का आगाज किया। इस आंदोलन के अंतर्गत लोगों को ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें घरेलू उत्पादों का प्रचार किया गया।

स्वदेशी आंदोलन के महत्वपूर्ण पहलू

1. ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार

स्वदेशी आंदोलन के तहत लोगों को ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया गया था। इससे देश के उत्पादन सेक्टर को बढ़ावा मिला और लोगों के बीच राष्ट्रीय गर्व का भाव उत्पन्न हुआ।

2. घरेलू उत्पादों को प्रचारित करने की पहल

स्वदेशी आंदोलन ने घरेलू उत्पादों को प्रचारित करने की पहल की। इससे भारतीय उत्पादन को बढ़ावा मिला और देश की अर्थव्यवस्था को स्थायी रूप से मजबूती मिली।

7 August- National Handloom Day

7 August
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National Handloom Day को हर साल 7 अगस्त को मनाया जाता है ताकि देश में हथकरघा बुनकरों को सम्मानित किया जा सके और भारत के handmade उद्योग को भी प्रमुखता मिल सके। यह दिवस हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले हथकरघा बुनकरों के महत्वपूर्ण योगदान को समझाने का अवसर प्रदान करता है जिनके धैर्य, मेहनत, और कौशल से बनाए गए वस्त्र हमारे राष्ट्रीय और सांस्कृतिक धरोहर को बचाए रखते हैं।

हथकरघा कला भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो सदियों से इस भूमि की धरोहरी धारा को जीवंत रखती आई है। हथकरघा कला एक विशेषता से भरी हुई है जो किसी भी देश की संस्कृति और परंपरा को स्पष्टता से दिखा सकती है। भारत में हथकरघा कला विभिन्न राज्यों में अपने-अपने प्राकृतिक और स्थानीय विशेषताओं के साथ अपनाई जाती है।

यह दिवस विशेष रूप से हथकरघा उद्योग के उन नायकों को समर्पित होता है जो लगातार मेहनत और समर्पण से इस शानदार कला को जीवंत रखते हैं। वे हर दिन नए नए रंग, डिज़ाइन और पैटर्न्स में सुंदर और विलक्षण वस्त्र बनाते हैं, जो भारतीय संस्कृति की विरासत को नए आयामों तक ले जाते हैं।

7 August 1925 M.S. स्वामीनाथन का जन्म

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1925 में जन्मे मांकोम्बू सम्बसिवन स्वामीनाथन, जिन्हें आम तौर पर एम.एस. स्वामीनाथन के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय जैनेटिकिस्ट और प्रशासक हैं, जिन्होंने भारत की हरित क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्हें भारत की हरित क्रांति के प्रमुख वास्तुकार के रूप में जाना जाता है, साथ ही उच्च उत्पादक गेहूँ और चावल की नवीन विविधता का प्रसार और विकास। 1987 में, इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआई) के निदेशक महामहिम ने उन्हें कृषि क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान, पहला विश्व खाद्य पुरस्कार, दिया। फिलीपींस में UN Environment Program ने उन्हें ‘इकोनॉमिक इकोलॉजी के पिता’ कहा है।

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